Raag Yaman राग यमन कल्याण
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राग यमन | Raag Yaman kalyan| राग यमन कल्याण

Raag Yaman राग यमन कल्याण
Raag Yaman राग यमन कल्याण

राग यमन कल्याण

प्रथम पहर निशि गाइये, ग नि को कर संवाद।
जाति संपूर्ण तीवर मध्यम, यमन आश्रय राग ॥

राग विवरण –

इस राग की रचना अपने ही नाम वाले थाट अर्थात कल्याण थाट से मानी गई है इसमें तीव्र मध्यम और अन्य स्वर शुद्ध प्रयोग किए जाते हैं ग वादी और नी संवादी माना जाता है रात्रि के प्रथम पहर में इसे गाया बजाया जाता है इसके आरोह-अवरोह में सातों स्वर प्रयोग किए जाते हैं इसीलिए इसकी जाति संपूर्ण है

थाट – कल्याण थाट

तीव्र –  म॑ (मध्यम)

शुद्ध – अन्य स्वर शुद्ध

वादी –

संवादी – नि

गायन समय – रात्रि का प्रथम पहर

जाति – संपूर्ण- संपूर्ण

आरोह- सा रे ग, म॑ प ध, नि सां, अथवा ऩि रे ग म॑ प ध नि सां।

अवरोह- सां नि ध प, म॑ ग रे सा ।

पकड़ – ऩि रे ग रे, प रे, ऩि रे सा ।

न्यास के स्वर – सा, रे, ग, प और नि

मिलते-जुलते राग – यमन कल्याण 

विशेषता- 

(1) मुसलमानों ने इसे यमन अथवा इमन कहना शुरू किया, किंतु इसका प्राचीन नाम कल्याण है। अतः इस राग के दो नाम हैं यमन अथवा कल्याण। इन दोनों को एक में मिला देने से एक दूसरा राग हो जाता है और इस नवीन राग यमन कल्याण में दोनों मध्यम प्रयोग किए जाते हैं यमन कल्याण में शुद्ध म केवल आरोह में दो गांधारों के बीच प्रयोग किया जाता जैसे – प म॑ ग म ग रे, नि रे सा  है। अन्य स्थानों पर आरोह-अवरोह दोनों में तीव्र म प्रयोग किया जाता है जैसे – ऩि रे ग म॑ प, प म॑ ग म ग रे, ऩि रे सा ।

(2) कल्याण अथवा यमन राग की चलन अधिकतर मंद्र सप्तक नि से  प्रारंभ करते हैं और जब तीव्र म से तार सप्तक की ओर बढ़ते हैं तो पंचम छोड़ देते हैं। जैसे – ऩि रे ग म॑ ध नि सां, इसीलिए इसका आरोह दो प्रकार से लिखा गया है। दोनों प्रकारों में केवल पंचम का अंतर है और कुछ नहीं। 

(3) कल्याण के कई प्रकार हैं – शुद्ध कल्याण, पूरिया कल्याण, जैत कल्याण इत्यादि। इन नामों से यह स्पष्ट है कि कल्याण शुद्ध और प्राचीन नाम है,  यमन नहीं।

(4) इन राग में ऩि रे और प स्वर समूह बार-बार प्रयोग किए जाते हैं ।

(5) कल्याण राग  को आश्रय राग भी कहा गया है | इसका कारण यह है कि जिस थाट से इसका जन्म माना गया है उसे भी कल्याण कहा गया है | ऐसा क्यों मन में इस शंका का उठना स्वाभाविक है | इसका समाधान यह है कि राग प्रचलन के बहुत दिनों बाद सभी रागों को 10 भागों में बांटा गया है जिन्हें ठाट या थाट कहा गया और प्रत्येक राग को किसी ना किसी थाट में रखा गया है | जिस समय थाट बनाए गए उस समय यह समस्या पैदा हुई कि उन्हें किन नामों से पुकारा जाए तथा विद्वानों ने प्रत्येक विभाग में आने वाले किसी मुख्य राग के नाम पर उस थाट का नाम रखा ,उदाहरण के लिए बिलावल राग के थाट को बिलावल और कल्याण राग के थाट को कल्याण कहा | इसीलिए कल्याण और बिलावल राग और थाट दोनों हैं | इस तरह कुल 10 राग हैं और उन्हीं नाम के 10 थाट भी हैं | 

(6) कल्याण की प्रकृति गंभीर है | इसमें बड़ा और छोटा ख्याल, तराना, द्रुपद, तथा मसीतखानी और राज़खानी गाते सभी सामान्य रूप से गाई -बजाई जाती हैं |

(7) इस राग की चलन तीनों सप्तको मैं होती है | कुछ राग  ऐसे भी होते हैं जो केवल मध्य और तार सप्तक में गाए जाते हैं किंतु कल्याण राग तीनों सप्तको में गाया बजाया जाता है

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